Sunday, October 16, 2016

Shayri



*जीत पक्की है*

कुछ करना है, तो डटकर चल।
*थोड़ा दुनियां से हटकर चल*।
लीक पर तो सभी चल लेते है,
*कभी इतिहास को पलटकर चल*।
बिना काम के मुकाम कैसा?
*बिना मेहनत के, दाम कैसा*?
जब तक ना हाँसिल हो मंज़िल
*तो राह में, राही आराम कैसा*?
अर्जुन सा, निशाना रख, मन में,
*ना कोई बहाना रख*।
जो लक्ष्य सामने है,
बस उसी पे अपना ठिकाना रख।
*सोच मत, साकार कर*,
अपने कर्मो से प्यार कर।
*मिलेंगा तेरी मेहनत का फल*,
किसी और का ना इंतज़ार कर।
*जो चले थे अकेले*
*उनके पीछे आज मेले हैं*।
जो करते रहे इंतज़ार उनकी
जिंदगी में आज भी झमेले है!








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